पाकिस्तान
के
प्रधानमंत्री
शाहिद
खाकान
अब्बासी
ने
यूनाइटेड
नेशन
में
पीएम
पद
पर
आने
के
बाद
पहली
बार
भाषण
दिया
गया,
जिसमें
उन्होंने
कश्मीर
पर
विशेष
ध्यान
देते
हुए
भारत
पर
आरोप
लगाया
कि
भारत
द्वारा
क्षेत्र
में
लोगों
के
संघर्ष
को
बेरहमी
से
दबाया
जा
रहा
है।
अब्बासी
के
इस
भाषण
का
भारत
ने
करारा
जवाब
देते
हुए
कहा
कि
पाकिस्तान
अब
टेररिस्तान
बन
चुका
है।
भारत
ने
अपने
भाषण
में
कहा
कि
यह
बहुत
ही
आसाधारण
बात
है
कि
पाकिस्तान
ओसामा
बिन
लादेन
और
मुल्लाह
ओमार
जैसे
आतंकिया
को
पनाह
देता
है
और
खुद
को
पीड़ित
बताता
है।
एक
छोटे
से
इतिहास
की
बात
करें
तो
आज
पाकिस्तान
आतंक
का
पर्याय
बन
गया
है।
जिस
देश
के
नाम
में
पवित्रता
है
वह
जगह
अब
आतंकवाद
की
धरती
बन
गई
है।
गुरुवार
को
यूनाइटेड
नेशन
की
भारतीय
सेक्रेटरी
ईनाम
गंभीर
ने
कहा
कि
दुनिया
में
आतंकवाद
को
फैलाने
और
आतंकी
बनाने
वाली
इंडस्ट्री
के
बाद
अब
पाकिस्तान
टेररिस्तान
बन
गया
है।
उन्होंने
कहा
कि
पाकिस्तान
को
यह
समझना
चाहिए
कि
जम्मू
एंड
कश्मीर
अभी
भी
भारत
का
अविभाज्य
हिस्सा
है।
गंभीर
ने
कहा
कि
पाकिस्तान
में
हाफिज़
मोहम्मद
सयैद
को
पनाह
दी
है
जिसे
यूएन
द्वारा
लश्कर
ए
तैयबा
का
आतंकी
घोषित
किया
जा
चुका
है
लेकिन
वह
अब
एक
राजनीतिक
पार्टी
का
नेता
बन
चुका
है।
बेशक
ये
सीमा
पर
कितना
भी
आतंकवाद
को
बढ़ावा
क्यों
न
दे
दें
लेकिन
ये
भारत
की
अखंडता
को
कभी
विभाजित
नहीं
कर
पाएगा।
गंभीर
ने
कहा
कि
पाकिस्तान
में
दंड
मुक्त
होने
के
बाद
आतंकी
वहां
की
सडकों
पर
खुलेआम
घूमते
हैं
और
हमने
उनके
भारत
के
मानवाधिकार
लेक्चर
के
बारे
में
सुना
है।
दुनिया
को
ऐसे
देश
से
लोकतंत्र
और
मानवाधिकारी
पर
सीख
लेने
की
जरुरत
नहीं
हो
जिसकी
स्थिति
खुद
चैरिटेबल
बनी
हुई
है।
बता
दें
कि
पाकिस्तान
के
प्रधानमंत्री
अब्बासी
ने
अपने
भाषण
में
कहा
था
कि
भारत
के
विद्रोह
और
आतंकवाद
के
अभियान
के
कारण
पाकिस्तान
शिकार
हो
रहा
है।
इसके
साथ
ही
उन्होंने
भारत
पर
आरोप
लगाया
था
कि
भारतीय
सैनिक
जम्मू
एंड
कश्मीर
में
नियंत्रण
रेखा
पर
आए
दिन
सीजफायर
का
उल्लंघन
करता
रहता
है।
हालांकि
जांच
की
अंतिम
रिपोर्ट
से
इस
मामले
में
किसी
निष्कर्ष
पर
पहुंचा
जा
सकेगा,
लेकिन
इतना
साफ
है
कि
अगर
सीबीआई
ने
कुछ
अन्य
लोगों
के
साथ
साथ
एक
सेवानिवृत्त
न्यायाधीश
को
गिरफ्तार
किया
है
तो
उसके
पीछे
मजबूत
आधार
होंगे।
अब
तक
की
कार्रवाई
से
साफ
संकेत
उभरे
हैं
कि
अवैध
रूप
से
मेडिकल
इंस्टीट्यूट
में
दाखिला
कराने
वाले
गिरोह
के
सुनियोजित
भ्रष्टाचार
में
आरोपी
न्यायाधीश
भी
शामिल
थे।
किसी
न्यायाधीश
के
भ्रष्टाचार
के
आरोप
में
गिरफ्तार
होने
का
यह
कोई
अकेला
या
पहला
मामला
नहीं
है।
दो
साल
पहले
गुजरात
में
निचली
अदालत
के
दो
न्यायाधीशों
को
गुजरात
हाईकोर्ट
के
सतर्कता
प्रकोष्ठ
ने
भ्रष्टाचार
निरोधक
अधिनियम
के
तहत
गिरफ्तार
किया
था।
उन
दोनों
पर
अदालत
में
पदस्थापना
के
दौरान
मामलों
का
निपटारा
करने
के
एवज
में
रिश्वत
लेने
का
आरोप
था।
इसके
अलावा,
समय-समय
पर
जजों
के
भ्रष्ट
आचरण
को
लेकर
सवाल
उठते
रहे
हैं।
हालत
यह
है
कि
अगर
किसी
न्यायाधीश
पर
रिश्वत
लेने
या
भ्रष्ट
तरीके
से
किसी
को
लाभ
पहुंचाने
के
आरोप
लगते
हैं
तो
अब
पहले
की
तरह
उस
पर
विश्वास
करने
में
संकोच
नहीं
होता
है।
इसके
बावजूद
कभी
ऐसे
मामले
सामने
आते
हैं
या
किसी
पक्ष
को
न्यायाधीशों
के
भ्रष्ट
आचरण
में
शामिल
होने
का
संदेह
होता
है
तो
उसके
खिलाफ
शिकायत
दर्ज
कराना
सहज
नहीं
होता
है।
दरअसल,
अन्य
क्षेत्रों
के
भ्रष्टाचार
से
निपटने
के
लिए
जांच
और
कार्रवाई
के
तंत्र
बने
हुए
हैं,
लेकिन
उच्च
न्यायपालिका
के
संदर्भ
में
इसका
अभाव
रहा
है।
यही
वजह
है
कि
निचली
अदालतों
के
स्तर
पर
फैले
भ्रष्टाचार
के
मामले
कभी-कभार
सामने
आ
भी
जाते
हैं,
लेकिन
उच्च
न्यायपालिका
पर
अंगुली
उठाना
आसान
नहीं
है।
महाभियोग
के
प्रावधान
तक
मामला
पहुंचने
की
जटिलता
से
सभी
वाकिफ
हैं।
इसलिए
जरूरत
इस
बात
की
है
कि
बाकी
क्षेत्रों
की
तरह
निचली
या
उच्च
न्यायपालिका
में
भी
भ्रष्टाचार
की
शिकायतों
से
निपटने
के
लिए
एक
ठोस
और
भरोसेमंद
तंत्र
बने।
विडंबना
यह
है
कि
जिस
महकमे
और
पद
के
बारे
में
सामान्य
लोगों
की
धारणा
यह
है
कि
वहां
से
इंसाफ
मिलता
है,
अगर
उन्हीं
पदों
पर
बैठे
लोगों
के
आचरण
भ्रष्ट
पाए
जाएं
तो
व्यवस्था
के
सबसे
भरोसेमंद
स्तंभ
पर
से
विश्वास
डगमगाता
है
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