आखिरकार<
अपने
सरदार
सरोवर
बांध
के
दरवाजे
खुल
गए।
यह
दुनिया
का
दूसरा
सबसे
ऊंचा
बांध
है।
इसके
रास्ते
में
अनेक
अड़चनें
आईं,
जिसके
कारण
इसके
बनने
में
छप्पन
साल
लग
गए
और
लागत
लगातार
बढ़ती
गई।
इससे
गुजरात,
मध्य
प्रदेश,
महाराष्ट्र
और
राजस्थान
के
सूखाग्रस्त
इलाकों
की
करीब
बीस
लाख
हेक्टेयर
कृषि
भूमि
के
लिए
सिंचाई
का
पानी
और
लाखों
लोगों
तक
पेयजल
पहुंचाना
संभव
हो
सकेगा
और
करीब
छह
हजार
मेगावाट
बिजली
का
उत्पादन
हो
सकेगा।
प्रधानमंत्री
नरेंद्र
मोदी
ने
बांध
का
उद्घाटन
करते
हुए
इसे
देश
के
लिए
बड़ी
उपलब्धि
बताया।
इस
बांध
की
परिकल्पना
सरदार
वल्लभ
भाई
पटेल
ने
की
थी
और
इसकी
नींव
डाली
थी
जवाहरलाल
नेहरू
ने।
तब
इस
बांध
की
ऊंचाई
अस्सी
मीटर
से
कुछ
अधिक
रखने
की
अनुमति
मिली
थी,
मगर
लगातार
इसकी
ऊंचाई
बढ़ाने
की
मांग
उठती
रही।
मध्य
प्रदेश
और
गुजरात
राज्य
सरकारों
के
बीच
इसे
लेकर
कई
बार
मतभेद
भी
उभरे।
कई
बार
अदालत
के
सामने
यह
मामला
पहुंचा
और
अलग
अलग
समय
पर
बांध
की
ऊंचाई
बढ़ाने
की
मांग
रखी
गई।
गुजरात
के
मुख्यमंत्री
रहते
नरेंद्र
मोदी
ने
भी
इसकी
ऊंचाई
बढ़ाने
की
मांग
पर
अनशन
किया
था।
अंतत:
करीब
एक
सौ
उनतालीस
मीटर
ऊंचा
यह
बांध
बन
कर
तैयार
हो
गया।
इस
बांध
की
ऊंचाई
बढ़ाने
का
विरोध
इसलिए
होता
रहा
कि
ऊंचाई
जितनी
बढ़ती
जाएगी,
उसके
डूब
क्षेत्र
में
उतने
ही
गांव
आते
जाएंगे।
उनके
पुनर्वास
को
लेकर
भी
कई
अड़चनें
थीं।
मध्य
प्रदेश
सरकार
ने
केंद्र
को
पत्र
लिख
कर
कह
दिया
था
कि
इतने
सारे
लोगों
का
पुनर्वास
उसके
बूते
की
बात
नहीं।
नर्मदा
बचाओ
आंदोलन
के
तहत
लगातार
इस
बांध
से
प्रभावित
होने
वाले
लोगों
के
समुचित
पुनर्वास
की
मांग
उठती
रही,
मगर
उसका
संतोषजनक
तरीके
से
निपटारा
नहीं
हो
पाया
है।
इस
बांध
के
बनने
के
बाद
करीब
ढाई
सौ
गांव
डूब
जाएंगे
और
करीब
पांच
लाख
लोग
बेघर
हो
जाएंगे।
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