कुछ
समय
पहले
ही
एक
कक्षा
में
सिर्फ
हाजिरी
के
वक्त
बोलने
में
चूक
की
वजह
से
लगातार
थप्पड़ों
से
पीटा
गया।
ऐसी
घटनाओं
की
खबरें
अक्सर
आती
रहती
हैं।
सवाल
है
कि
स्कूल
परिसरों
में
बच्चों
के
साथ
ऐसे
बर्ताव
क्या
उनके
भीतर
आतंक
का
भाव
पैदा
नहीं
करते
और
क्या
इससे
उनकी
पढ़ाई
और
व्यवहार
की
सहजता
बाधित
नहीं
होती
है।
कई
अध्ययनों
में
ये
तथ्य
सामने
आ
चुके
हैं
कि
इन्हीं
वजहों
से
बहुत
से
बच्चे
या
तो
शिक्षा
को
अलविदा
कह
जाते
हैं
या
फिर
शारीरिक
और
मानसिक
प्रताड़ना
को
झेलने
पर
मजबूर
रहते
हैं।
हाल
ही
में
दिल्ली
में
कुछ
रैन
बसेरों
में
रह
रहे
बच्चों
ने
बातचीत
के
दौरान
बताया
कि
वे
स्कूल
जाने
से
इसलिए
कतराते
हैं
कि
शिक्षक
का
व्यवहार
बच्चों
को
डरा
देता
है।
बच्चों
की
मनोदशा
और
उनकी
सीखने
की
प्रक्रिया
को
समझे
बिना
अगर
शिक्षक
उन्हें
प्रताड़ित
करेगा
तो
बच्चों
के
संपूर्ण
विकास
और
उनसे
भयमुक्त
व्यवहार
की
मांग
कैसे
की
जा
सकती
है।
हैरानी
की
बात
यह
है
कि
हमारा
समाज
इस
तरह
की
गैरकानूनी
बर्ताव
को
मान्यता
प्रदान
करता
है।
मैंने
कई
अभिभावकों
से
बातचीत
तो
उन्होंने
अपनी
पक्की
राय
बताई
कि
बच्चों
को
डांट
कर
या
पिटाई
करके
ही
उन्हें
अनुशासित
किया
जा
सकता
है।
जब
तक
इस
तरह
की
सोच
हमारे
शिक्षकों
और
अभिभावकों
में
विद्यमान
रहेगी,
हमारे
देश
के
भविष्य
इसी
प्रकार
आतंकित
और
प्रताड़ित
होते
रहेंगे।
अब
ऐसी
सोच
को
चुनौती
देने
की
जरूरत
है।
हमारे
बीच
या
आसपास
ही
ऐसे
लोग
मौजूद
होते
हैं
जो
बच्चों
के
साथ
आपराधिक
व्यवहार
करने
से
भी
नहीं
हिचकते।
बच्चों
के
खिलाफ
हो
रहे
अपराध
हमारा
ध्यान
इस
बात
की
ओर
ले
जाते
हैं
कि
हमारी
मानसिकता
इतनी
पिछड़ी
और
संकीर्ण
है
कि
हम
अपने
व्यवहार
में
घुले
सामंती
तत्त्वों
के
बारे
में
सोचना
भी
नहीं
चाहते।
हैरानी
की
बात
यह
है
कि
हमारा
समाज
इस
तरह
की
गैरकानूनी
बर्ताव
को
मान्यता
प्रदान
करता
है।
मैंने
कई
अभिभावकों
से
बातचीत
तो
उन्होंने
अपनी
पक्की
राय
बताई
कि
बच्चों
को
डांट
कर
या
पिटाई
करके
ही
उन्हें
अनुशासित
किया
जा
सकता
है।
जब
तक
इस
तरह
की
सोच
हमारे
शिक्षकों
और
अभिभावकों
में
विद्यमान
रहेगी,
हमारे
देश
के
भविष्य
इसी
प्रकार
आतंकित
और
प्रताड़ित
होते
रहेंगे।
अब
ऐसी
सोच
को
चुनौती
देने
की
जरूरत
है।
हमारे
बीच
या
आसपास
ही
ऐसे
लोग
मौजूद
होते
हैं
जो
बच्चों
के
साथ
आपराधिक
व्यवहार
करने
से
भी
नहीं
हिचकते।
बच्चों
के
खिलाफ
हो
रहे
अपराध
हमारा
ध्यान
इस
बात
की
ओर
ले
जाते
हैं
कि
हमारी
मानसिकता
इतनी
पिछड़ी
और
संकीर्ण
है
कि
हम
अपने
व्यवहार
में
घुले
सामंती
तत्त्वों
के
बारे
में
सोचना
भी
नहीं
चाहते।
बच्चों
पर
अभिभावक
और
शिक्षकों
की
हर
आज्ञा
को
मानने
का
बोझ
लाद
दिया
जाता
है।
अगर
बच्चे
उस
आज्ञा
के
बोझ
से
छुटकारा
चाहते
हैं
तो
उन्हें
मौखिक
या
शारीरिक
हिंसा
का
सामना
करना
पड़ता
है।
बच्चों
के
कोमल
हृदय
पर
ऐसे
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